
यात्रीगण कृपया ध्यान दें , जी हाँ ध्यान से पढिये इसे | यह आपके लिए और हम सबके लिए जानना जरुरी है | आप झारखण्ड राज्य के धार्मिक स्थल देवघर आतें हैं और रेलवे द्वारा चलाये जा रहे रेलगाड़ी की सवारी भी करतें हैं | इसमें कोई दो राय नहीं है की आप रेलगाड़ी में सवार होने के पूर्व टिकट काउंटर और प्लेटफार्म के प्रवेश द्वार पर होने वाले व्यवहार से दो - चार नहीं होते होंगे | यह परेशानी सावन माह में होती है , क्योंकि लाखो शिव भक्त यहाँ आस्था व्यक्त करने के लिए आतें हैं और कांवरिया वस्त्रों वाले लोगों का कारंवा नज़र आता है | मानो कोई महासंग्राम में सभी निकले हों | लेकिन यहाँ एक खास मकसद होता है , बाबा बैधनाथ पर जलार्पण कर अपनी आस्था व्यक्त करना और फिर अपने घर को वापस जाना | केशरिया रंगों से लबरेज वस्त्रों में सजे कांवरियों की भीड़ को देखकर रेलवे को ऐसा मालूम पड़ने लगता है , जैसे भी हो रेलवे की दुकानदारी में ज्यादा से ज्यादा आमदनी को शामिल कर लो और ऐसा करतें भी है | कांवरियों को अपना मुल्ला मन सीधे किउल और पटना तक का टिकट कटाने को बाध्य करतें है , वो भी टिकट नहीं है का बहाना बनाकर | जबकि स्थानियों लोगों द्वारा टिकट काउंटर पर बैध नाथ धाम और जसीडीह से नजदीकी स्टेशन का टिकट मांगने पर टिकट काउंटर पर प्रतिनियुक्त प्रतिनिधि टिकट देने से सीधे तौर पर नकार देते हैं | जिस कारण स्थानीय लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है और उन्हें मजबूर होकर खीच - खीच करना पड़ता है | रेलवे स्टेशन के मेनेजर को भी इससे दो -चार होना पड़ता है और फिर स्थानीय लोगों को उनके नजदीकी गंतव्य तक का टिकट उपलब्ध कराना पड़ता है | सही मायनो में सावन माह मुसीबतों का सफर हो जाता है ,सावन माह में बैधनाथ धाम और जसीडीह से मधुपुर और झाझा दिशाओं की और जाने वाली रेलगाड़ियों में सफर करने के लिए एक चुनौती का सामना करना पड़ता है | ऐसी स्थिति में नजदीकी गंतव्य तक जाने वाले लोगों को अपने साथ मतदाता परिचय पत्र या फिर कोई अन्य पहचान पत्र का सहारा लेकर टिकट काउंटर पर अपने गंतव्य का टिकट लेना पड़ता है | रेलवे स्टेशन के आस - पास केशरिया वस्त्रों में चहल - पहल करते लोगों को देखकर रेल कर्मियों के मन में आमदनी का लड्डू फूटने लगता है और वे सीधे टिकट काउंटर की और उन्हें भेजते हैं | इन कांवरियों में अगर कोई जसीडीह से नजदीकी गंतव्य तक का हो और वो अपने गंतव्य तक का टिकट मांगते है तो फिर क्या टिकट काउंटर पर बैठे रेलकर्मियों का पैंतरा शुरू हो जाता है और वह रेलवे के वरीय अधिकारी का आदेश का हवाला देकर टिकट देने से इनकार कर देते हैं | बातें आगे बढने लगती है , तब उन्हें अपना परिचय पत्र का उपयोग करना पड़ता है | उधर प्लेटफार्म प्रवेश द्वार पर काले कोट पहन खड़े टी टी भी अपना पैतरा देने से पीछे नहीं हटता है और प्रवेश द्वार से भागने का प्रयास करता है | स्थानीय तो स्थानीय है , जब वे अड़ जाते है तो टी टी का सिट्टी - पिट्टी गम हो जाता है |
सावन माह में ३० दिनों तक रेलगाड़ी का सफर मुसीबतों का सफर साबित हो जाता है और मुसीबत इतना पेचीदा हो जाता है | श्रावणी मेला के नाम पर डयूटी करने आये रेलकर्मियों द्वारा खुलकर गुंडा गर्दी भी किया जाता है | मासिक टिकट लेकर चलने वाले यात्रियों के टिकट को फाड़ने का प्रयास किया जाता है | ऐसी घटना बीते वर्ष हो चुकी है | बैधनाथ धाम स्टेशन पर एक यात्री का मासिक टिकट टी टी ने फाड़ कर फेक दिया | वह यात्री इस मामले को लेकर स्टेशन मास्टर और अन्य पधाधिकारियों से संपर्क किया लेकिन किसी ने टिकट फाड़ने की घटना को गंभीरता से नहीं लिया , तब जाकर वह न्यायलय का शरण लिया और फिर कार्रवाई शुरू हुई | टिकट फाड़ने वाले टी टी को माफी मांगना पड़ा | वह यात्री तो एक दबंग टाइप का था तब तो ऐसा कर पाया | कमज़ोर टाइप के लोग इन गुंडा टाइप के टी टी से क्या लड़ पाएंगे | यह एक गंभीर सवाल है
सावन महिना में रेलवे का नजरिया इतना बदल जाता है यह आप सबों तक लिखकर पहुंचाना आसन नहीं है | इसे नजदीकी से जानना है तो कभी यहाँ से नजदीकी स्टेशन तक टिकट मांग कर देखिये |