संताल परगना की धरती साहित्य के दृष्टिकोण से उसर और अनुपजाऊ रही है , यही कारण है की यंहा के मिटटी में अंकुरित हो रहे विरबे को फलने - फूलने का मौका नही मिल पता है नतीजतन साहित्य के सौपान पर नोनिहल के कदम पड़े भी तो गुमनामी के गहरे अंधेरे में खो jata है किंतु इस उसर jamin पर sambhambnayon के phasal जब ugte हैं तो लगता है mano vatavaran को disha और दशा मिलता - sa partit होता है