Monday, April 13, 2009
दिल से नजदीकी का अहसास कराती मांस
प्रस्तुत कथा संग्रह के अनुसार समाज के उन सभी संसाधनों को मुखरित करने का प्रयास किया गया है , जो आज भी किसी न किसी कारणवश विकाश के रौशनी से अब भी कोसों दूर है उक्त कथा संग्रह के द्वारा संथालपरगना के समस्त मूल्य चेतनाओं को परत दर परत बदलाव की और ले जाया गया है मूल्यहीन के इस दौर में मुख्य स्वार्थी और आत्मकेंद्रित हो रही शाषण और प्रशासन के अन्दर कुंठित हो गयी मानवता को उजागर किया गया है जो आज भी शाश्वत है हाँ उनके माननेवाले बदल गएँ है बदलाव मनुष्य की सोंच में आया है मूल्य चेतना कम हुई है हम आदमियत खोते जा रहे हैं बात विश्वास व विश्वग्राम की करतें हैं , पर पडोसी तक को नहीं जानते हैं , और उन्हें पूछ्तें तक नहीं हैं स्वार्थी होने पर मनुष्य की संवेदना समाप्त हो जाती है उसमे नैतिक साहस नहीं रहता है ऐसे में वह किसी की भी सहायता नहीं कर सकने लायक रहता है माना की बहुत कुछ बदला है , लेकिन सब कुछ समाप्त नहीं हुआ है यहाँ इस धरती पर , ऐसे लोग भी है जिनकी मानवीय एक नैतिक मूल्यों में गहरी आस्था है यकीन कीजिये आज भी दुष्टों एक बेईमान की तुलना में भले लोंगों की संख्या अधिक है , तभी तो यह दुनिया चल रही है विश्वास बना हुआ है अपने कथन के समर्थन में कुछ सत्य घटनाओं का उल्लेख करना चाहता हूँ मांस और सिम्मी के अलावे राजमहल की......................इस काव्यसंग्रह में कई बातों का उल्लेख किया गया है , जो अध्ययन के दौरान दिल को छु जाती है
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