चुनाव के नाम पर एक और जहाँ पुरे देश में उहफोह की स्तिथि बनी हुई है वहीं दूसरी और मतदाताओं के बीच अपने मत डालने के लिए बनाये गए नियमो का मजाक उराया जा रहा है जिसका नज़ारा पूरे देश में देखने को मिल रहा है कहीं - कहीं तो मतदाताओं की संख्या इस प्रकार से मतदाता सूचि में अंकित किया गया है कि उसके अनुसार कई मतदाता अपने मत के अधिकार से वंचित हो रहें हैं अब सवाल उठता है कि इसके लिए कौन जिम्मेवार है ? जनता या सरकार अगर इन बातों पर गौर फरमाए तो पता चलता है कि जनता से ज्यादा सरकार ही दोषी है क्योंकि उन्होंने सरकारी राशि का उपयोग जनहित में करने के बजाय अधिकांशतः बंदरबांट करने में ही उपयोग किए , परिणामस्वरूप आज उन्हें चुनाव के पूर्व मतदाता सूचि में मतदाताओं कि नाम अंकित करवाने कि ..............
चुनाव के वक्त मतदाता सूचि में नाम अंकित करने के लिए सरकार को चिंता सताने लगी है और वे सरकारी धन को दोनों हाथ से खुलेआम लुटाने में लगे है , खामियाजा एक तरफ नेताओं की मंशा पूरी हो रही है तो दूसरी तरफ सरकारी रहनुमयों की
मतदान के अधिकार के लिए बनाये गए नियमों को सरकार के द्वारा चुनाव के वक़्त न शुरू कर आम अवकाश के दिनों में करना चाहिए तभी भारत के सभी मतदाता आसानी से अपने मत का अधिकार कर संकेंगें
संकेंगे
सन्केंगे
सन्केन्गे
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